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Tuesday, June 26, 2007

हार


दिन को हारे हुए लोगो की मुशकिलो से
परेशान होकर शाम की गोद मे सो जाने दो
जाने कब टूट जाये कोई सपना अभी मे खुश हूँ
दिल मे छूपी उस आखरी खुशी का चिराग जल जाने दो
राते तड़पती है सूरज से आख्ँ मिलाने के लिय
तारो को चाँद् की चाँदनी से धुल कर निखर जाने दो
गरमी की दोपहर का सूनापन दिखता है अब भी शाम की आँखो मे
कुछ यू करो उस आवारा दोपहर का हर पल जशनो से रंग जाने दो
दिल क्यो बहक जाता है उनकी हर एक छोटी सी अदा पर
कहता है टूटता हूँ तो टूटने दो मगर एक बार उन के दिल से लग जाने दो
वो जो सोया है बच्चा फुटपाथ पर ठड़ से बाचने के लिय ओढ़ कर अपना नंगातन
ऐ खुदा एक दिन एक पल ही सही मगर उसे अपनी माँ के आचल मे सिमट जाने दो
मैने अपनी हार का मातम कुछ् यू मनाया उनकी जीत का जशन फीखा हो गया
बहुत पी चुका हूँ शाराब साखी अब मेरा जाम आसूँओ से भर जाने दो
आशिष

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